
अब आपको किसी हिल स्टेशन जाने की जरूरत नहीं, चिरैया का यह गांव चार महीने बना रहता है टापू
समझ में नहीं आता कि नदी में गांव है या गांव में नदी
सिकरहना नदी हर साल डूबा देती है इस गांव को
चंपारण का एक ऐसा गांव जो आज भी ढूंढ रहा अपने वजूद को
चिरैया: यूं तो इस समय पूरे बिहार में कोरोना महामारी चरम पर है। लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक इस समय बिहार वासियों के लिए बाढ़ बन गई है। बिहार वासी कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार झेल रहे हैं। बाढ़ के ऐसे हालात में पूर्वी-चंपारण भी अछूता नहीं है और अछूता नहीं है चिरैया प्रखंड का एक दुर्भाग्यशाली गांव पटज़िलवा।
इस गांव के आधे किलोमीटर की दूरी से निकलती है सिकरहना (बूढ़ी गंडक) नदी। जिसका तांडव बरसात के दिनों में सबसे ज्यादा पटज़िलवा के लोगों को झेलना पड़ता है। नदी पर बनाए गए बांध के एक हिस्से में सुलिस गेट लगाया जाना था। लेकिन आज़ादी के 70 साल से अधिक बीत जाने के बावजूद आज तक सूलिस गेट नहीं लगा। फलस्वरूप सिकरहना का पानी ओवर फ्लो होकर इस गांव को डूबा देता है।
समय बदला, देश बदला, विधायक भी बदले सांसद भी बदले और बदली सरकारें,
बस नहीं बदले तो इन गांव वालों के दिन, क्या करें बेचारे।
साल के 3-4 महीने गाँव वाले बांध पर बिताते हैं। इतने दिनों तक यह 500 से अधिक घरों वाला गांव टापू बना रहता है। विधानसभा चुनाव भी नजदीक है।
ऐसे में नेता जी लोग भी आएंगे, हाथ में चूड़ा-मीठा का पैकेट लाएंगे,
अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपको फिर फंसायेंगे,
आप भी हां में हाँ मिलाते हुए ले लेना पैकेट खाने का,
इसी बहाने आपके न सही, नेताजी के तो अच्छे दिन आएंगे।
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