
नफ़रत जो घोलते हैं उन्हें प्यार देंगे हम, हर एकबार ऐसा ही उपहार देंगे हम
आइए पढ़ते हैं अनमोल जी की चार बेहतरीन ग़ज़लें-
ग़ज़ल-1
इस शिद्दत से फ़ोटो में हम उनको देखा करते हैं
जैसे बच्चे मोबाइल में विडियो देखा करते हैं
हमको उनके चेहरे में दिखती है दुनिया की झलकी
हमको अपनी दुनिया प्यारी है सो देखा करते हैं
उनको देखे से ये धरती मख़मल जैसी दिखती है
उनको वह दिखलाएँ कैसे हम जो देखा करते हैं
जिस दिन उनसे मिलता हूँ तो चहका करता हूँ दिनभर
बस्ती वाले हैरानी से मुझको देखा करते हैं
हम ख़्वाबों में उड़ते-उड़ते देखा करते हैं अक्सर
उड़ते पंछी ऊँचाई से जो-जो देखा करते हैं
सोचा करते हैं ये पीढ़ी हमसे कितनी आगे है
इंस्टा पर हम जब बच्चों के फोटो देखा करते हैं
इश्क़ की प्याली सर चढ़ जाए एक तभी दिखता है एक
लोग भी क्या-क्या फ़र्जी पी कर दो-दो देखा करते हैं
जिस दिन ख़ुद को लगते हैं अनमोल किसी भी एंगल से
उस दिन अपनी हस्ती को हम ज़ीरो देखा करते हैं
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ग़ज़ल-2
नफ़रत की धीमी आँच में जलते हुए सभी
दुश्मन हैं ख़ुद के, लोग ये लड़ते हुए सभी
इक-दूसरे को देते रहे हैं बधाइयाँ
इक-दूसरे की आँख में खलते हुए सभी
मौक़ा निकल गया तो ये पछताएँगे बहुत
बाज़ी के बाद हाथ को मलते हुए सभी
अपनी उदासियों को कहाँ तक छिपाएँगे
नक़ली ख़ुशी के बल पे उछलते हुए सभी
देखे गये हैं बारहा मौसम के ज़ोर पर
साये यहाँ के धूप निगलते हुए सभी
ताबीज़ तेरे इश्क़ का पहना तो अब मेरे
बनने लगे हैं काम बिगड़ते हुए सभी
'अनमोल' राहतों का पता खोजते हुए
मंज़र चुने हैं हमने उबलते हुए सभी
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ग़ज़ल–3
पेड़ की शाख़ों पे जैसे आरियाँ रक्खी गयीं
यूँ दिमाग़ों में हमारे बीवियाँ रक्खी गयीं
चाह थी अपनी उड़ानें ही रहें अव्वल सदा
औरतों के पाँव में तब बेड़ियाँ रक्खी गयीं
चारदीवारी में दुनिया है यह समझाने के बाद
बन्द कमरे में मुसलसल सिसकियाँ रक्खी गयीं
काम के बोझे में तेरे कॉल ऐसे हैं कि ज्यूँ
रेल के लम्बे सफ़र में खिड़कियाँ रक्खी गयीं
चार दिन तक लड़-लड़ाकर थक-थकाकर आख़िरश
व्हाट्सएप पर प्रेम वाली चिट्ठियाँ रक्खी गयीं
कान में घोले गये पहले ख़राबे ढंग से
फिर दिलों के बीच चौड़ी खाइयाँ रक्खी गयीं
हमने घर के द्वार पर रखी है दिनभर की थकन
जिस तरह मंदिर के बाहर जूतियाँ रक्खी गयीं
चल दिये बच्चे सुनहरी नींद वाले गाँव में
कान में जब माँ की मीठी लोरियाँ रक्खी गयीं
रख लिये 'अनमोल' ने कुछ दोस्त अपनी लिस्ट में
छत पे जाने के लिए ज्यूँ सीढ़ियाँ रक्खी गयीं
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ग़ज़ल-4
नफ़रत जो घोलते हैं उन्हें प्यार देंगे हम
हर एक बार ऐसा ही उपहार देंगे हम
हम दुश्मनों को जीतते हैं सिर्फ प्यार से
बच्चों के हाथ में यही हथियार देंगे हम
हम लोग हैं मुरीद मुहब्बत के दोस्तो!
यानी मुहब्बतों को ही विस्तार देंगे हम
इतने तो बेवकूफ़ नहीं हैं बताइए
क्यूँ आने वाली नस्ल को तक़रार देंगे हम
पसरी हैं आसपास में जितनी बुराइयाँ
मिलकर अगर लड़े तो उन्हें मार देंगे हम
इंसानियत का खून बहाएँ जो बेसबब
हरगिज़ न ऐसे खंजरों को धार देंगे हम
'अनमोल' जिसके वास्ते हो आदमी की ज़ात
ऐसी हर एक सोच को आधार देंगे हम
के. पी. अनमोल
-सांचोर(राजस्थान)
ई-मेल:-koanmol.rke15@gmail.com
(संपादक-हस्ताक्षर वेब पत्रिका)
बहुत बधाई।सभी ग़ज़लें उम्दा
ReplyDeleteवह्ह्हह..... बहुत खूब
ReplyDeleteमुबारकबाद