
प्रदेश के ग्रामीण चिकित्सकों ने शुरू किया "ईमेल आंदोलन", नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री को किए ईमेल
ज्ञात हो कि 2015 में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने पटना में आयोजित NIOS के विशेष कार्यक्रम में यह घोषणा की थी कि पूरे बिहार राज्य में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे ग्रामीण चिकित्सकों को NIOS एवं बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के संयुक्त तत्वाधान में एक वर्षीय प्रशिक्षण कराया जाएगा, ताकि ये लोग प्रशिक्षित हो जाएं और इनके नाम से झोलाछाप जैसा शब्द हट जाए। हुआ भी बिल्कुल वैसा ही। 2015 में फॉर्म भरने से पहले सभी ग्रामीण चिकित्सकों का एक सम्मेलन पटना में आयोजित किया गया जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन्हें भरोसा दिलाया था जी आप प्रशिक्षण पूरा करो, हम आपके लिए सरकारी सेवा में जोड़ने जे बारे में सोचेंगे।
लेकिन उक्त घोषणा के बाद प्रशिक्षिण होने के बावजूद 5 साल बीत गए और कोरोना जैसी महामारी में जहां इन ग्रामीण चिकित्सकों से काम लिया जा सकता था, वहां उनसे न लेकर अप्रशिक्षित जीविका, आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से काम लिया गया।
इसलिए रिमाइंडर के तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह मेल भेजा गया है। ग्रामीण चिकित्सकों ने अपने मेल में कहा कि हमलोग पहले से ही ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे थे, प्रशिक्षण के उपरांत भी दे ही रहे हैं। प्रशिक्षण कोर्स में महामारी से निपटने के लिए विशेष रूप से चैप्टर भी था। परंतु कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में हमारी प्रतिभाओं को सही उपयोग नहीं किया गया। जबकि जब बड़े बड़े डॉक्टरों ने अपने क्लिनिक बन्द कर दिए थे, मरीज इलाज कराने के लिए दर दर भटक रहे थे, तब हमलोग जानपर खेलकर मरीजों की सेवा कर रहे थे, जिसकी प्रशंसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी की थी।
अब देखना यह है कि इस अनोखे "ईमेल आंदोलन" का क्या नतीजा निकलकर आता है। क्या ग्रामीण चिकित्सकों को उनका हक मिलेगा या फिर नतीजा "ढाक के तीन पात" होता है।
न्यूज़ डेस्क
Mang bahut hi achha hai
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