मेहनतकस का काम तमाम, जय श्री राम जय श्री राम

मेहनतकस का काम तमाम, जय श्री राम जय श्री राम

Diwakar Pandey Poet

आज रविवार है और हम एक बार पुन: हाज़िर हैं कुछ नई रचनाओं के साथ। आपलोगों का साहित्य के प्रति प्रेम और लगाव देखकर काफी ख़ुशी हो रही है। आपलोगों के सहयोग के बिना शायद इतना कुछ कर पाना सम्भव ही नहीं। आप सब अपना प्यार बनाए रखें और नई-नई रचनाओं का आनंद लेते रहें।

यदि आप भी कविता, कहानी, गीत, ग़ज़ल या साहित्य के किसी भी विधा के रचनाकार हैं, तो आप भी अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ हमें निम्नलिखित ई-मेल अथवा व्हाट्सएप पर भेज सकते हैं:-

सत्येन्द्र गोविन्द
ई-मेल: satyendragovind@gmail.com
व्हाट्सएप नं०-6200581924

साहित्य के रविवारीय अंक में इस बार हम लेकर आए हैं आदरणीय "दिवाकर पाण्डेय" जी की रचनाएँ।

आइए पढ़ते हैं "दिवाकर पाण्डेय" जी की रचनाएँ:-

1.जय श्री राम जय श्री राम

पाई जेब न धेला काम
जय श्री राम जय श्री राम।

अर्थब्यवस्था गिरी धड़ाम
जय श्री राम जय श्री राम।

बेच पकौड़ा पाओ दाम
जय श्री राम जय श्री राम।

छल्ल कबड्डी में आवाम
जय श्री राम जय श्री राम।

दीगर मुद्दे झंडुबाम
जय श्री राम जय श्री राम।

मेहनतकस का काम तमाम
जय श्री राम जय श्री राम।

मौका देखो खाव हराम
जय श्री राम जय श्री राम।

मत छोड़ो तुम टुच्चे काम
जय श्री राम जय श्री राम।

सत्ताधीशों तुम्हें प्रणाम
जय श्री राम जय श्री राम।

नाम करो होकर बदनाम
जय श्री राम जय श्री राम।
====================================
2.त्वमेव नेता मम देव देव

त्वमेव डंडा, झंडा त्वमेव
त्वमेव बैनर नारा त्वमेव
त्वमेव गांधी त्वमेव चरखा
सर्वं असत्यं वादा त्वमेव
त्वमेव लुच्चा त्वमेव नकटा
त्वमेव नेता मम देव देव
====================================
3.उसने घूँघट का पट खोला

उसने घूँघट का पट खोला छनाननन
चूड़ी झनकी पायल खनका छनाननन

देखे उसके आँसू जिसने यूँ गुजरा
गर्म तवे पर पानी जैसा छनाननन

बाहें उसकी पकड़ी तो वो बलखाई
जैसे गिरकर चम्मच छिटका छनाननन

उसने बाहें डाली मेरी बाहों में
लाखों लाखों का दिल टूटा छनाननन

डूबा जबसे उन आंखों की मस्ती में
इन हाथों से प्याला छूटा छनाननन
====================================
4.आईना उसने दिखाया

ठोकरों से तिलमिलाया तब अकल आई मुझे।
वक्त ने मुझको सिखाया तब अकल आई मुझे।

ये बुरा है वो बुरा है कर  रहा था मैं कभी
आईना उसने दिखाया तब अकल आई मुझे।

ये जली है वो बुझी है रोज़ लड़ता माँ से था
रोटियां को खुद बनाया तब अकल आई मुझे।

कैद होना चाहता था उनके दिल में बैठकर
बंद तोतों को उड़ाया तब अकल आई मुझे

शायरी में चाँद तारे तोड़ता था रोज़ ही
बोझ जब घर का उठाया तब अकल आई मुझे

मैं समझता आ रहा था है ग़ज़ल मुश्किल बहुत
धान जब मैनें लगाया तब अकल आई मुझे

लोग घर को किसलिए जन्नत बताते हैं मियाँ
एक दिन परदेश आया तब अकल आई मुझे।

है नहीं मंतर पता तो हाथ बिल में मत करो
साँप ने जब काट खाया तब अकल आई मुझे।

सिर मुड़ाते ही पड़े ओले सुना तो था मगर
मूड़ जब अपना मुड़ाया तब अकल आई मुझे।

कांगरेसी ही बुरे हैं सुन रहा था हर तरफ
भाजपा को आजमाया तब अकल आई मुझे।
====================================
5.अखबारों का रद्दी हूँ

हिंदी वाला हूँ मैं पूरा पिद्दी हूँ।
रफ कॉपी या अखबारों का रद्दी हूँ।

जो भी बैठा उसकी नैया डूबी ही
मैं ऐसी मनहूसों वाली गद्दी हूँ।

नैन मटक्का जिससे करना नावाजिब
मेहनतकस की बेटी हूँ मैं भद्दी हूँ।

बांट रहे हैं सब क्यों मुझको फिरकों में
मैं तो पूरे भारत की चौहद्दी हूँ।

पटका दूंगी जो मुझको टरकायेगा
मैं तो सारे भाषाओं की दद्दी हूँ।
====================================
6.याद तुम्हारी जब आएगी

ठुकराकर जब तुम जाओगे और भला क्या कर लेंगे
देखेंगे सूनी राहों को आंख में आंसू भर लेंगे।

कच्चे लोगों से याराना पानी पानी होगा ही
गिरते बारिश के ओलों को कितने दिन तक धर लेंगे

जी लेंगे खुश देखेंगे जब तुमको अपनी दुनिया में
याद तुम्हारी जब आएगी थोड़ा थोड़ा मर लेंगे

रुपये पैसे सोने चांदी उद्यम हैं बाजारों के
तुझसे मोहब्बत करने वाले गर लेंगे तो सर लेंगे।

चाँद सितारों पर रुकने वालों रास्ते में रुक जाना
हम तो अपना ठौर ठिकाना थोड़ा सा ऊपर लेंगे।

अपने दिल से मेरी कुर्सी मत सरकाओ कोने में
ग़फ़लत हो तो राजी होना हम तो पूरा घर लेंगे।

देने वाले खूब दुआएं देंगे उसको उड़ने की
उससे पहले चिड़िया का पर करके वार कतर लेंगे।
====================================
नाम-दिवाकर पाण्डेय
ग्राम- जलालपुर
पोस्ट- कुरसहा
जिला- बहराइच
उत्तर प्रदेश 271821
मोबाइल 7526055373
8118995166
मेल- divakar.pandey.dp@gmail.com
Blog- divakarpandey5003577.blogspot.com




0 Response to "मेहनतकस का काम तमाम, जय श्री राम जय श्री राम"

Post a Comment

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article