
हवस परस्त है दिल का मकान ले लेगा, दिलों में रह के भी रिश्तों की जान ले लेगा
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-सत्येन्द्र गोविन्द
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साहित्य के रविवारीय अंक में इस बार हम लेकर आए हैं आदरणीय "विकास" जी की ग़ज़लें।आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं - "उछालो यूँ नहीं पत्थर" (ग़ज़ल संग्रह), आपकी रचनाएँ देश की कई स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।
आइए पढ़ते हैं विकास जी की चार बेहतरीन ग़ज़लें-
ग़ज़ल-1
जब रातों की बांहों में खो जाता हूँ
कुछ कुछ उनके ख़्वाबों में खो जाता हूँ
आंगन दर्पण दामन ये सब देखूं तो
अपने घर की यादों में खो जाता हूँ
मुझको मंज़िल मिलती है धीरे धीरे
मैं भी अक्सर राहों में खो जाता हूँ
मेरी सांसें खुशबू खुशबू होती है
जब जब उनकी बातों में खो जाता हूँ
चलते चलते थक कर यूँ बैठूं जो मैं
पहले अपने पांवों में खो जाता हूँ
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ग़ज़ल-2
हवस परस्त है दिल का मकान ले लेगा
दिलों में रह के भी रिश्तों की जान ले लेगा
उसे तो फ़िक्र है अपनी ही हक़ परस्ती की
कभी ज़मीन कभी आसमान ले लेगा
लबों के झूठ को सच में बदलने की ख़ातिर
वो अपने हाथ में गीता कुरान ले लेगा
किसे पता था कि पैदल निकल पड़ेंगे सब
नया ये रोग ज़माने की शान ले लेगा
उसे यकीन न होगा मेरी वफ़ा पर तो
हंसी हंसी में मेरा इम्तिहान ले लेगा
कभी जुनून की हद से जो दूर जाएगा
वो अपने हक़ में फ़लक का वितान ले लेगा
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ग़ज़ल-3
काम देगी नहीं दिल्लगी छोड़ दो
इस नए दौर में बन्दगी छोड़ दो
कल मिला आईना बोलकर ये गया
यार अपनी कहीं सादगी छोड़ दो
इक नया हो सफ़र हो नई रौशनी
है गुज़ारिश यही तीरगी छोड़ दो
कुछ परेशान हूं एक दरिया मुझे
मुस्कुरा के कहा तिश्नगी छोड़ दो
आज हालात ऐसे मेरे हो गए
लोग कहने लगे ज़िंदगी छोड़ दो
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ग़ज़ल-4
लाया हूं अब की बार मुहब्बत की पोटली
मैंने भी छोड़ दी है वो दौलत की पोटली
माना तुम्हारा आज ज़माना खराब है
लेकिन गली गली है इनायत की पोटली
उनका पता बताओ कि उनको मैं ढूंढ लूं
बस्ती शरीफ़ और शराफ़त की पोटली
होगा न अब कोई भी सियासत के रुबरु
दरिया में डाल देंगे सियासत की पोटली
नफ़रत की आंधियां चलीं रिश्तों के दरमियां
सब कुछ उड़ा चली ये अदावत की पोटली
नाम-विकास
सम्पर्क का पता- गुलज़ार पोखर,मुंगेर(बिहार)811201
मोबाइल-8709156853
व्हाट्स एप्प-9934224359
ई-मेल-bikash munger676@gmail. com
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