
कुछ कहाँ कब हमारे नाम आया दर्द अपना था अपने काम आया
आप सभी साहित्य प्रेमियों के लिए हम एक बार पुन: हाज़िर हैं कुछ नई रचनाओं के साथ।
यदि आप भी कविता,कहानी,गीत,ग़ज़ल या साहित्य के किसी भी विधा के रचनाकार हैं तो आप भी अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ हमें निम्नलिखित ई-मेल अथवा व्हाट्सएप पर भेज सकते हैं।
-सत्येन्द्र गोविन्द
ई-मेल:satyendragovind@gmail.com
व्हाट्सएप नं०-6200581924
आइए साहित्य के इस रविवारीय अंक में पढ़ते हैं 'लाल मोहम्मद' जी की रचनाएँ-
___________________________________
1. बहुत वीरान है दुनिया
बहुत वीरान है दुनिया उजड़ जाती तो अच्छा था
कोई आँधी मेरे सर से गुजर जाती तो अच्छा था।
हजारों ख़्वाहिशें सदियों से पलती हैं मेरे दिल में
ये हसरत नौजवानी में ही मर जाती तो अच्छा था।
दिल-ए-कमजर्फ को अब कौन समझाने भला आए
हुई मुद्दत कहा हमने, संम्भल जाती तो अच्छा था।
जली सौ बार फिर भी रस्सियों की बल नहीं जाती
तेरी काकुल का अब के बार बल जाती तो अच्छा था।
___________________________________
2. मुझे डर है समन्दर डूब जाए
रहे इस दिल की वीरानी सलामत
खेजाओं की निगहबानी सलामत
मुझे डर है समन्दर डूब जाए
रहे न उसकी तुगियानी सलामत
बरस जाएगी आँखें गर हमारी
रहेगी कब भला पानी सलामत
कफ़स में चैन से तो जी रहा हूँ
रहे ता उम्र जिन्दानी सलामत
अदू ने जाने कैसे सोच ली है
सलामत वह , जहाँ फानी सलामत
तजल्ली देख लेती मेरी आँखें
जो रहती तुर-ए-सीनानी सलामत
हया है शर्म से अब पानी - पानी
यहाँ पे "लाल" उरियानी सलामत
_________________________________
3.सिसकते हुए आबलों की न पूछो
अजब ज़िन्दगी के झमेले रहे हैं
भरी भीड़ में हम अकेले रहे हैं
मेरे दिल में वीरानियों का है डेरा
मेरे आगे दुनिया के मेले रहे हैं
मेरी ज़िन्दगी रास आई न मुझको
हर इक गाम ख़ारों के बेले रहे हैं
सिसकते हुए आबलों की न पूछो
जो अब सांस पैरों तले ले रहे हैं
मेरी बेबसी पे उन्हें देखिये तो
बड़े प्यार से वो मजे ले रहे हैं
कोई वक्त के शाहों को मशविरा दे
जो हर दिन नए फैसले ले रहे हैं
___________________________________
4. दर्द अपना था अपने काम आया
कुछ कहाँ कब हमारे नाम आया
दर्द अपना था अपने काम आया
चलते-चलते मैं थक गया आख़िर
हाय अपना न दर-व-बाम आया
किस से पूछूँ मैं कौन बतलाए
जिन्दगी में ये क्या मुकाम आया
उनका वादा था शाम को मिलिए
अब तलक भी नहीं वो शाम आया
सब को भर-भर के दिए हैं उसने
अपने हिस्से न कोई जाम आया
वह खता करके हैं मसरूर बहुत
बे खता सर मेरे इल्जाम आया
_________________________________
5. इस दर्द सरीख़े मौसम में
इस दर्द सरीख़े मौसम में
सौगात ग़मों की खूब रही
आँखों से लहू तो टपका ही
बरसात ग़मों की ख़ूब रही
जलते घर आँगन में देखा
झुलसे ख़्वाबों की उम्मीदें
उजड़े-उजड़े से गुलशन में
आफ़ात ग़मों की ख़ूब रही
ये राम-रहीम के बँटवारे
या वो जीतें या हम हारें
ये मंदिर-मस्जिद के मुद्दों
पर बात ग़मों की ख़ूब रही
-लाल मोहम्मद "लाल"
शाहीन मेडिकल हॉल,
अम्बिका नगर, मोतिहारी,
पूर्वी-चंपारण (बिहार)-845401
मो० नं०- 9931407405
0 Response to "कुछ कहाँ कब हमारे नाम आया दर्द अपना था अपने काम आया"
Post a Comment