बीत गए दिन रातें कितनी किन्तु न उनसे बात हुई, सूखा सूखा सावन बीता नयनों से बरसात हुई

बीत गए दिन रातें कितनी किन्तु न उनसे बात हुई, सूखा सूखा सावन बीता नयनों से बरसात हुई

Ragini Tiwari Sneh Poet
इस बार भी छठ पूजा बहुत ही बेहतर बीता।आशा है आप सभी इस महापर्व का आनंद लिए होंगे।आज रविवार है और अपने पटल पर साहित्य को लेकर हम पुनः उपस्थित हैं।

हमें इस बात की बेहद ख़ुशी है कि  आप सभी का प्यार निरंतर मिल रहा है। आप अपना सहयोग ऐसे ही बनाए रखें और पढ़ते रहें 'रविवारीय साहित्यिकी' और इस बार की रचनाएँ कैसी लगी कमेंट कर के ज़रूर बताएँ।

यदि आप भी कविता,कहानी,गीत,ग़ज़ल या साहित्य के किसी भी विधा के रचनाकार हैं तो आप भी अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ हमें निम्नलिखित ई-मेल अथवा व्हाट्सएप पर भेज सकते हैं।

-सत्येन्द्र गोविन्द
ई-मेल:satyendragovind@gmail.com
व्हाट्सएप नं०-6200581924

साहित्य के इस रविवारीय अंक में प्रस्तुत है आदरणीया "रागिनी तिवारी 'स्नेह' " जी की रचनाएँ।

आइए पढ़ते हैं "रागिनी" जी की रचनाएँ-
___________________________________
1.माँग रही हूँ तुमसे बस ये

माँग रही हूँ तुमसे बस ये मेरा साथ निभाना तुम।
तुम मेरे हो मै हूँ तेरी जग को ये बतलाना तुम।।

तुममें देख सकूँ मैं खुद को मन पावन दर्पण कर दो।
इंद्रधनुष सा सतरंगी तुम ये कोरा जीवन कर दो।
जब जब मैं हो जाऊंँ व्याकुल मेरा सर सहलाना तुम,
तुम मेरे हो मैं हूँ तेरी जग को ये बतलाना तुम।

सोना चाँदी हीरे मोती महलों के हैं ख्वाब नहीं
जिसमें लिखे गए हो सपने ऐसी कोई किताब नहीं
चुटकी भर सिंदूर लगाकर मेरी माँग सजाना तुम
तुम मेरे हो मै हूँ तेरी जग को ये बतलाना तुम।।

सप्तपदी के सात वचन हम सातों जनम निभाएँगे।
स्नेह रागिनी बस तुमसे है छोड़ कभी न जाएँगे।
गीत प्रेम के दुनिया गाए छेड़ो अगर तराना तुम,
तुम मेरे हो मै हूँ तेरी जग को ये बतलाना तुम।।
____________________________________
1.पाकर साथ तुम्हारा

पाकर साथ तुम्हारा मौसम और सुहाना हो गया।

कल तक जो बारिश की बूँदें,मुझको सिर्फ भिगाती थीं,
जाना भीग पिया के संग कहकर खूब चिढाती थीं।
कान्हा से बन आए हो सपना साकार किया तुमने,
इक इक क्षण का साथ तुम्हारा सौ-सौ बार जिया हमने।।

सोच सोच के ख्वाब में तुमको मन मस्ताना हो गया।
पाकर साथ तुम्हारा मौसम और सुहाना हो गया।।
.
मेरे गीतों को सुनने वाली घर की चारदीवारें थीं,
बारिश बिजली चंदा तारे ठंडी अलमस्त बहारें थीं।
उन गीतों का मान बढ़ा जब साथ तुम्हारा पाया है,
सुनकर तारीफ किया तुमने चाहे जैसे ही गाया है।।

एक मीठी मुस्कान से तेरी मेरा नजराना हो गया।
पाकर साथ तुम्हारा मौसम और सुहाना हो गया।।
.
पागलपन सी बातें सुनकर मेरी क्यों मुस्कुराते हो,
करके प्यारी प्यारी बातें मुझे भी खूब रिझाते हो।
इस मीठे एहसास को मिलकर हमको सुनना है,
जगती इन आंखों से ही कितने सपने बुनना है।।

जाग रहे थे बस हम दोनों और जमाना सो गया।
पाकर साथ तुम्हारा मौसम और सुहाना हो गया।।
___________________________________
3.बीत गए दिन रातें कितनी

बीत  गए दिन रातें कितनी,
किन्तु  न उनसे  बात  हुई।
सूखा सूखा सावन बीता,
नयनों   से   बरसात   हुई ।।

   नेह की बातें करने वाले,
   नेह का बन्धन तोड़ चलें।
   पथिक बने थे जो राहों की,
    राहें अपनी  मोड़ चले ।
   कितनी राहों से हम गुज़रे,
   फ़िर भी न मुलाक़ात हुई।
   सूखा सूखा सावन गुजरा ,
   नयनों   से   बरसात   हुई ।।

   स्वप्न एक दिखलाया मुझको
   जीवन संग बिताउंगा।
   प्राण प्रिए तुम प्राण हो मेरी
   छोड़ कभी ना जाऊगां।
   दुनिया से तो जीत गई पर,
   तुमसे मेरी मात हुई।
   सूखा सूखा सावन बीता ,
   नयनों   से   बरसात   हुई ।।
  

    बिंदिया, चूड़ी ,मेहंदी ,महावर,
     बिछूए की तैयारी थी।
    लाल केसरी, मोर पंख और
     नील गगन सी सारी थी।
    अनामिका में सजी अंगूठी
    फिर भी ना बारात हुई ।
    सूखा सूखा सावन बीता ,
    नयनों   से   बरसात   हुई।
___________________________________
4.अभी थोड़ा मुझको पढ़ने दो अम्मा

उजाड़े हैं घर आंधियों ने कितने
हवा सा  मुझको बहने दो अम्मा।

दम तोड़ देते हैं पिंजरे में पंछी
विस्तृत गगन में उड़ने दो अम्मा।

डालेगा दाना बहुत ही शिकारी
मगर जाल में ना फंसने दो अम्मा।

कच्ची  उम्र है  करो ना विदाई
अभी थोड़ा मुझको पढ़ने दो अम्मा।

-रागिनी तिवारी 'स्नेह'
प्रतापगढ़,उत्तरप्रदेश-230001
ई-मेल:tiwariragini575@gmail.com
पिता- राकेश कुमार तिवारी
माता - रतन तिवारी
शैक्षिक योग्यता- स्नातक
परास्नातक - हिंदी , शिक्षाशास्त्र
B.ed ,up tet , ccc
रुचि_ कविता लेखन, गायन , विभिन्न विषयों को  पढ़ना।




0 Response to "बीत गए दिन रातें कितनी किन्तु न उनसे बात हुई, सूखा सूखा सावन बीता नयनों से बरसात हुई"

Post a Comment

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article