
समझो न नारी को कभी बेचारी नित नए इतिहास रच रही है नारी
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-सत्येन्द्र गोविन्द
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साहित्य के इस रविवारीय अंक में प्रस्तुत है आदरणीया "शिल्पी कुमारी" जी की रचनाएँ। आपकी रचनाओं से संबंधित जानकारियाँ- ◆"बच्चों की मुस्कान" नाम से पुस्तक राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से
◆लिखत पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं-
(अ) राजस्थान पत्रिका
(आ) दैनिक भास्कर
(इ) दैनिक नवज्योति
(ई) बेटा पढ़ाओ-संस्कार पत्रिका
(उ) अदबी उड़ान
(ऊ) बच्चों का देश
(ए). मधुमती
(ऐ) कलमकार पत्रिका
◆सम्मान एवं पुरस्कार-
(1) चंद्रदेव शर्मा पुरस्कार-प्रथम पुरस्कार
(राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा)
(2)एफ एम 94.3 उदयपुर से शी इज उदयपुर
(3) इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार-2018-2019
(4) महादेवी वर्मा उदयीमान रचनाकार सम्मान 2019
◆निम्नोंक्त साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध-
(अ) युगधारा संस्था
(आ) नवकृति
(इ) काव्यांगन
(ई) अन्य
◆प्रकाशनाधीन-
(अ) 'एक नई उड़ान'(बाल कविता संग्रह)
(आ) 'लाली' (नाटक की पट-कथा)
(इ) 'रीना की दोस्ती' (बाल कहानी संग्रह)
(ई) जीना चाहती हूँ मैं (कविता संग्रह)
◆रुचि- स्वतंत्र लेखन, समाज सेवा, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि.
आइए शिल्पी जी की रचनाओं को पढ़ें-
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1. "नारी"
कल तक जो नारी ,
थी किस्मत की मारी
आज हुआ उसका, पलड़ा भारी
समंदर चीरा ,धरती को नापा है
देख इसे दुश्मन डर के भागा है
कमजोर नहीं ,ये कोमल है
ममता की ये मूरत है
रूप अनेक इसके,
रिश्तों की ये डोरी है
लगती कितनी नाजुक ,
पर शक्ति है ,
देवों की ये भक्ति है
समझ नहीं पाया कोई इसे
सागर जितनी गहरी है
कम नहीं किसी से,
बस अपनों की खातिर,
सब सह लेती है
हर गम ख़ुशी से यह पी लेती है
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2. "धैर्य बनाए रखना तुम"
आई है आपदा की घड़ी
नेक राह डटे रहना तुम
प्रकृति लेगी परीक्षाएं
धैर्य बनाए रखना तुम
मुश्किलों भरा है यह दौर
मानवता बचाएं रखना तुम
उन्नति के पथ पर बढ़ना
अपने घर में ही रहना तुम
इस बाधा से है सब को लड़ना
मास्क लगाए रखना तुम
प्रकृति लेगी परीक्षाएं
धैर्य बनाए रखना तुम
सबका हित हो जिसमें
काम वहीं करना तुम
ऑनलाइन उन्नति के पथ पर
वर्क फॉर्म होम करना तुम
हिलमिल झिलमिल टिमटिमाते
खिड़की में तारों सा हँसना तुम
बीमारियों को टाटा कहकर
कोवॉइड नाइन्टिन से लड़ना तुम
मुश्किलों भरा है परिवर्तन
पर मानवता बचाएं रखना तुम
प्रकृति लेगी परीक्षाएं
धैर्य बनाए रखना तुम
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3."मेरा देश"
आओ मेरे प्यारे भाई-बहनों,
तुम्हें जग सारा दिखलाऊँ।
एक सपनों के देश में ले जाऊँ ।
जहाँ भांति- भांति की बोली,
वहाँ है कई धर्मों के हमजोली।
वहाँ का पानी पावन गंगा,
जहाँ लहराए तिरंगा।
वह जगह कुछ विशेष है,
चन्दन वाली माटी श्रेष्ठ हैं।
जहां गौरी के गालों से ,
लेकर उगता सूरज लाली,
खेतों में लहराती सुनहरी बाली,
वहाँ का दूध जैसे अमृत की प्याली।
बागों में श्रावण का झूला,
जब झूले मतवाली ,
हर दिन लगे दीवाली।
वहां की संस्कृति विशेष है,
विश्व गुरु वह देश है।
भाती - भाती के तीर्थों की रानी,
अमर उसके विकास की कहानी।
सोने की गिन्नी
तो कभी अठन्नी -चवन्नी
आज कागज का रुपया विशेष है
अमर -अजर मेरा देश है।
अरबों का व्यापार
और पुष्पों से होता अभिषेक है।
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4. "देश का गौरव नारी"
चकोर की भांति उड़ान भर रही है नारी
हर क्षेत्र में सशक्त हो रही है नारी
समझो न नारी को कभी बेचारी
नित नए इतिहास रच रही है नारी
देश को आगे बढ़ा रही है नारी
देश का भविष्य बना रही है नारी
गार्गी सी प्रखर हो रही है नारी
कुशल राजनीतिज्ञ तो कभी गृहिणी
प्रकृति में अजर-अमर है नारी
गंगा सी पावन , रिश्तों में जान
माँ का रूप, लक्ष्मी होती हैं नारी
हर गम पी कर ख़ुशी खुश है नारी
गागर में सागर भर भर कर
आविष्कार नए नित दिखा रही है नारी
आज हर क्षेत्र में समानता ला रही है नारी
एक कदम नित आगे बढ़ा रही नारी
अवनी से अंबर तक जा रही है नारी
हमारे देश का गौरव बढ़ा रही है नारी
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5. "पथिक तुम चले चलो"
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
राहों में आये जो कंकर
उसे लिए चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
सफलता की कुंजी असफलता
प्रयत्न तुम किए चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
मार्गदर्शक होती है हर बाधा
बाधाओं से कुछ सीखते चलो
जीवन का सत्य देखते चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
मीठी -मीठी गोली
और बहकाने वाली टोली से बचे चलो
अभिमान को तुम छोड़े चलो
सभी को साथ लिए चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
अतीत का दुःख- सुख भुलाए चलो
हर पल कुछ नया किए चलो
अपना कर्म तुम किए चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
एक दिन मनाएं
तुम्हारे लिए त्योहार
कर्म ऐसा कुछ किए चलो
मानवता के लिए जिये चलो
पथिक तुम चले चलो
नेक राह बढ़े चलो
-शिल्पी कुमारी
जी-53, हाउसिंग बोर्ड कोलोनी,
हिरण मगरी,सेक्टर-14
उदयपुर(राजस्थान)
पिन- 313001
ईमेल- shilpirsp@gmail.com
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